(गुजरात चुनाव के दौरान ही मैं जामनगर में एक दिन था। जामनगर की ब्रास इंडस्ट्री की परेशानी, उसकी सरकार से उम्मीदों, सरकार ने उनके लिए क्या किया। ये सब जानने-समझने के क्रम में एक इंडस्ट्रियलिस्ट ने यूं ही कहा कि अब सोचिए छोटे-छोटे काम तो यहां शहर के आसपास के गांवों में बसे लोग घर से ही करके दे जाते हैं। मुझे गुजरात के विकसित गांवों की तरक्की की वजह समझ में आ रही थी।)
ब्रास इंडस्ट्रीज के लिए मशहूर जामनगर शहर से करीब पांच किलोमीटर दूर गांव है नया नागना। गांव तक संकरी पक्की सड़क है। लेकिन, गांव के अंदर अभी भी सड़कें कच्ची ही हैं। करीब पांच हजार लोगों की आबादी का गांव है। गांव की गलियां बहुत चौड़ी नहीं हैं। लेकिन, ज्यादातर घर पक्के हैं। ये सीधे-सीधे तो गांव ही है लेकिन, दरअसल ये गांव जामनगर शहर के ही तीनों इंडस्ट्रियल एरिया का ही हिस्सा है।
नया नागना गांव में मैं जिस घर में गया दो मंजिल का पक्का मकान था। ग्राउंड फ्लोर पर सिर्फ एक कमरा था जो, रहने के लिए था। एक बड़े कमरे में और बाउंड्री वॉल के अहाते में तीन-चार मशीनें ली हुईं थीं जिनसे ब्रास को काटकर छोटे-छोटे पार्ट्स बनाने का काम हो रहा था। करीब नौ लोगों के परिवार की तीन महिलाएं भी पुरुषों के साथ ब्रास पार्ट्स बनाने में जुटी थीं। मशीन चला रहे धर्मेंद्र ने बताया पिछले पांच सालों से उनका परिवार यही कर रहा है। और, परिवार का एक सदस्य औसतन सौ रुपए तक घर में ही ये काम करके कमा लेता है।
नया नागना की पांच हजार की आबादी में से सत्तर प्रतिशत की आजीविका का साधन शहर की ब्रास इंडस्ट्री ही है। और, जामनगर के आसपास के सौ गांव नया नागना जैसे ही ब्रास इंडस्ट्री से ही कमाई करते हैं। जामनगर के एक बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट ने मुझे बताया कि जामनगर के तीनों (दो पुराने, तीसरा नया बना है) इंडस्ट्रियल एरिया और शहर में कुल मिलाकर करीब पचास हजार वर्कर काम करते हैं। जबकि, आसपास के गांवों में एक लाख से ज्यादा लोगों की रोजी इसी ब्रास इंडस्ट्री से चल रही है।
साफ है गुजरात के गावों ने, शहरों के साथ विकास का अद्भुत संतुलन बना रखा है। वो, बड़ी आसानी से शहरों की तरक्की में से अपने हिस्से का विकास कर ही लेते हैं। यही वजह है कि गुजरात में तरक्की शहरों की बपौती नहीं रही है।
ब्रास इंडस्ट्रीज के लिए मशहूर जामनगर शहर से करीब पांच किलोमीटर दूर गांव है नया नागना। गांव तक संकरी पक्की सड़क है। लेकिन, गांव के अंदर अभी भी सड़कें कच्ची ही हैं। करीब पांच हजार लोगों की आबादी का गांव है। गांव की गलियां बहुत चौड़ी नहीं हैं। लेकिन, ज्यादातर घर पक्के हैं। ये सीधे-सीधे तो गांव ही है लेकिन, दरअसल ये गांव जामनगर शहर के ही तीनों इंडस्ट्रियल एरिया का ही हिस्सा है।
नया नागना गांव में मैं जिस घर में गया दो मंजिल का पक्का मकान था। ग्राउंड फ्लोर पर सिर्फ एक कमरा था जो, रहने के लिए था। एक बड़े कमरे में और बाउंड्री वॉल के अहाते में तीन-चार मशीनें ली हुईं थीं जिनसे ब्रास को काटकर छोटे-छोटे पार्ट्स बनाने का काम हो रहा था। करीब नौ लोगों के परिवार की तीन महिलाएं भी पुरुषों के साथ ब्रास पार्ट्स बनाने में जुटी थीं। मशीन चला रहे धर्मेंद्र ने बताया पिछले पांच सालों से उनका परिवार यही कर रहा है। और, परिवार का एक सदस्य औसतन सौ रुपए तक घर में ही ये काम करके कमा लेता है।
नया नागना की पांच हजार की आबादी में से सत्तर प्रतिशत की आजीविका का साधन शहर की ब्रास इंडस्ट्री ही है। और, जामनगर के आसपास के सौ गांव नया नागना जैसे ही ब्रास इंडस्ट्री से ही कमाई करते हैं। जामनगर के एक बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट ने मुझे बताया कि जामनगर के तीनों (दो पुराने, तीसरा नया बना है) इंडस्ट्रियल एरिया और शहर में कुल मिलाकर करीब पचास हजार वर्कर काम करते हैं। जबकि, आसपास के गांवों में एक लाख से ज्यादा लोगों की रोजी इसी ब्रास इंडस्ट्री से चल रही है।
साफ है गुजरात के गावों ने, शहरों के साथ विकास का अद्भुत संतुलन बना रखा है। वो, बड़ी आसानी से शहरों की तरक्की में से अपने हिस्से का विकास कर ही लेते हैं। यही वजह है कि गुजरात में तरक्की शहरों की बपौती नहीं रही है।
कोई व्यक्ति गुजरात से गुजर भर जाये तो यह फैसेनेशन होना लाजमी है।
ReplyDeleteअब तो मन करने लगा है गुजरात बास करने का .मगर भइये गुजराती आती नही .
ReplyDelete[कई कमेंट्स डाला पता नही क्यों परेशां होने के बाबजूद पोस्ट नही हो पाया .बड़ा धासू कमेंट्स था .मूड हमेशा बनता नही फिलहाल क्या हर हाल मे टिपण्णी और मीट का समर्थन करता हूँ . बेवजह किसी को इतना वजन मत दें . 10 ग्राम को एक किलो न बनाया जाए. ]
काश यह बात उत्तर प्रदेश में हो पाती!
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